भारत में कंप्युटर प्रोसेसर्स क्यूँ नहीं बनाए जाते?

 

भारत में कंप्युटर प्रोसेसर्स क्यूँ नहीं बनाए जाते?
फोटो स्त्रोत: Wikimedia

विश्व में सेमीकन्डक्टर इंडस्ट्री लगभग 500 बिलियन ड़ॉलर्स की है। अगर भारत के हिसाब से देखा जाए तो यह हमारे देश की जीडीपी का लगभग 17 प्रतिशत बैठता है। ऐसे में यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि हमारा देश इतनी बड़ी इंडस्ट्री से बाहर क्यूँ है। जबकि भारत लगभग हर बड़ी इंडस्ट्री में काम कर रहा है।

वर्तमान में अमेरिका, चीन और ताइवान का सेमीकन्डक्टर इंडस्ट्री में दबदबा है। विश्व भर के कंप्युटर, मोबाईल फोन और अन्य उपकरणों में उपयोग किये जाने वाले 90 प्रतिशत से ज्यादा प्रोसेसर्स इन्ही तीन देशों की कंपनियां बनाती है।

आज के आर्टिकल में हम बात करेंगे कि आखिर वो क्या वजहें है जिनके कारण भारत जैसा बड़ा देश कंप्युटर प्रोसेसर्स नहीं बनाता है।

क्यूँ भारत में सेमीकन्डक्टर विकसित नहीं किया जा सकता?

सेमीकन्डक्टर इंडस्ट्री कई मायनों में बाकी इंडस्ट्रीज़ से काफी अलग होती है। दरअसल कोई भी सेमीकन्डक्टर प्रोसेसर आम तौर पर तब उपयोग में लिया जा सकता है जब उसके लिए कंप्युटर प्रोग्राम लिखा जाए। कहने का मतलब है किसी भी प्रोसेसर को एक कंप्युटर प्रोग्राम के साथ ही काम में लिया जा सकता है।

कंप्युटर प्रोग्राम से मतलब उन सभी सॉफ्टवेयर और एप्स से है जो कि आप अपने कंप्युटर और मोबाईल फोन्स में प्रतिदिन इस्तेमाल करते है। इन सॉफ्टवेयर और एप्स को बनाते समय डेवलपर्स उन्ही प्रोसेसर्स को ध्यान में रखते हैं जो कि वर्तमान में प्रचलन में है। ऐसे में किसी भी नए प्रोसेसर के लिए ऐसे सॉफ्टवेयर और एप्स डेवलप करवाना सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि अगर प्रोसेसर को सपोर्ट करने वाले सॉफ्टवेयर और एप्स ही नहीं होंगे तो ऐसे प्रोसेसर का कोई फायदा नहीं होगा और कोई भी हार्डवेयर निर्माता उन्हे अपने सिस्टम में काम में नहीं लेगा।

आज के समय में इंटेल, एएमडी, मीडियाटेक, क्वालकॉम जैसी कंपनियां ही प्रोसेसर बनाती हैं और इन्ही कंपनियों के प्रोसेसर्स पर आधारित सॉफ्टवेयर और एप्स डेवलप किये जाते हैं। ऐसे में जब नए डेवलप किये गए प्रोसेसर के लिए सॉफ्टवेयर और एप्स ही उपलब्ध नहीं होंगे तो ऐसे प्रोसेसर को बनाने से कोई फायदा नहीं होगा।

दूसरा सबसे बड़ा कारण जिसकी वजह से भारत में प्रोसेसर्स डेवलप नही किये जा सकते वो है इसका डेवलपमेंट बहुत ज्यादा महंगा होना। दरअसल एक छोटे मोबाईल फोन प्रोसेसर को ज़ीरो से डेवलप करने में लगभग 3 से 4 बिलियन ड़ॉलर्स का खर्च आता है। जबकि बड़े स्तर पर प्रोडक्शन के लिए प्लांट के निर्माण के लिए 8 से 12 बिलियन ड़ॉलर्स का खर्च अलग से करना पड़ता है। लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण बात ये है भारत में अगर कोई बड़ी कंपनी इतना खर्च करने के बाद कोई चिप डेवलप करती भी है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उस चिप को कोई खरीदेगा। क्योंकि बात फिर वहीं आकर अटक जाती है कि वही प्रोसेसर्स खरीदे जाते है जिनके लिए बाजार में सॉफ्टवेयर और एप्स उपलब्ध होते हैं।

क्या भारत में कोई प्रोसेसर डेवलप किया गया है?

दरअसल भारत में इसरो, डीआरडीओ और कई प्राइवेट कंपनियों में अपने प्रोसेसर्स विकसित किये हैं। लेकिन इनमे से ज्यादातर प्रोसेसर्स उनके कुछ विशेष प्रयोगों के लिए काम में लिए जाते है। इसरो भी अपने लिए प्रोसेसर बनाता है लेकिन अपने अंतरिक्ष अभियानों में इस्तेमाल करने के लिए बनाता है। वहीं डीआरडीओ अपने रक्षा उपकरणों के लिए प्रोसेसर्स का निर्माण करता है। इनमे से कोई भी प्रोसेसर सामान्य जन के उपयोग के लिए नहीं बनाया जाता है।

पिछले दिनों भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (IIT) के शोधकर्ताओं ने शक्ति नाम से एक प्रोसेसर विकसित किया था जिसका इस्तेमाल सामान्य उपयोग के प्रोसेसर के रूप में किया जा सकता है। लेकिन यहाँ पर भी वही समस्या आती है कि शक्ति प्रोसेसर को सपोर्ट करने वाले सॉफ्टवेयर और एप्स उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए इस प्रोसेसर का इस्तेमाल भी ज्यादातर आईआईटी के शोध कार्यों में ही किया जा रहा है।