दलितों को समझना होगा कि उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है

 

दलितों को समझना होगा कि उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है
फोटो स्त्रोत: Al Jazeera

दिल्ली का एक इलाका है, ‘सराय काले खां’। अगर आप दिल्ली मे रहते हैं तो आपने इस इलाके के बारे मे जरूर सुना होगा या फिर यहाँ स्थित अंतर्राज्यीय बस अड्डे से बस जरूर ली होगी। दिल्ली के इसी क्षेत्र के रहने वाले एक दलित युवक सुमित के एक मुस्लिम युवती खुशी के साथ प्रेम संबंध थे। चूंकि दोनों बालिग थे और शादी करना चाहते थे इसलिए दोनों ने अपने अपने परिवारों से इस बारे मे बात की और शादी करने की इच्छा जाहिर की।

सुमित की माँ ने एक निजी समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू मे बताया कि उनके बेटे का उक्त लड़की के साथ 3-4 सालों से प्रेम प्रसंग चल रहा था। सुमित ने अपनी माँ से लड़की के माता पिता से रिश्ते की बात करने को कहा। सुमित की माँ ने बताया कि हम घर के 5-6 लोग उनके घर गए और दोनों बच्चों की शादी के बारे मे बात की।

उन्होंने आगे बताया कि लड़की के घरवालों ने शादी के लिए रजामंदी देने से साफ इनकार कर दिया और उलटा इन लोगों को जलील कर के भगा दिया।

इसके बाद सुमित और खुशी ने आर्य समाज मंदिर मे शादी कर ली और इसका बाकायदा रजिस्ट्रेशन भी करवाया गया।

अब आप सोच रहे होंगे कि हम आपको ये सब क्यों बता रहे हैं। दरअसल सारी कहानी इन दोनों बच्चों के शादी करने के बाद ही शुरू होती है और शुरू होता दलितों की इस बस्ती मे मुस्लिम भीड़ का आतंक।

सुमित के खुशी से शादी करने से नाराज खुशी के परिजनों और उनके साथियों ने शनिवार रात सराय काले खाँ गाँव की दलित बस्ती मे जमकर उत्पात मचाया और अपने सामने आने वाली हर चीज मे तोड़ फोड़ की। इन गुंडों ने दलित बस्ती मे घुसकर आधे घंटे तक लाठी डंडों और तलवारों के साथ दलितों की संपत्ति को तहस नहस कर दिया।

दलितों को समझना होगा कि उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है

अब आप सोच रहे होंगे कि दलितों के साथ हुए इस अत्याचार के खिलाफ दलितों के सबसे बड़े मसीहा चंद्रशेखर आजाद रावण ने बड़े आंदोलन का आह्वान किया होगा। या फिर इन दोनों बच्चों की शादी के समर्थन मे जिग्नेश मेवानी, उदित राज, दिलीप मण्डल जैसे बड़े दलित एक्टिविस्टों ने मार्च निकाला होगा या फिर सोशल मीडिया मे बड़े बड़े लेख लिखे होंगे। सवर्ण जातियों के साथ किसी भी मसले पर दलितों के समर्थन मे कैम्पेन चलाने वाले कम्युनिस्टों ने तो पक्का दिल्ली की सड़के जाम कर दी होंगी और प्रसिद्ध JNU छाप ढपली बजा बजाकर मोदी सरकार की चूलें हिला दी होंगी।

अगर आप सच मे ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं। वास्तव मे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। किसी भी दलित मसीहा या एक्टिविस्ट ने इस मसले पर कुछ भी नहीं बोला है और ना ही किसी वामपंथी मीडिया संस्थान ने इस मुद्दे पर कोई लेख लिखा है। ना ही बड़े पत्रकारों ने इसके लिए मोदी सरकार को घेरा है और ना ही रविश कुमार ने ये आरोप लगाएं हैं कि दिल्ली मे डर का माहौल है।

इन सब के अलावा किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेता ने और यहाँ तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी इलाके का दौरा करना मुनासिब नहीं समझा है। बात बात मे सुप्रीम कोर्ट पहुँच जाने वाले प्रशांत भूषण की वकालत भी शायद एलप्रेक्स की गोली खाकर सो गई है।

दलित मुस्लिम एकता और जय भीम- जय मीम के झंडाबरदार भी शायद शुतुरमुर्ग की तरह अपनी गर्दन जमीन मे दबाएं बैठे हैं। दलितों के सबसे बड़े शुभचिंतक राहुल और प्रियंका गांधी को भी इस मसले के बारें संभवतः कोई जानकारी नहीं मिली है, वरना कम से कम ये दोनों जरूर भागकर लड़के के घर का दौरा करते और मजबूती से बयान देते कि मोदी राज मे दलितों पर अत्याचार हो रहा है।

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है तो दलितों को ये समझना पड़ेगा कि आखिर क्या कारण है कि उन पर होने वाले अत्याचारों के एक मामले मे ये पूरी जमात मुखर होकर सामने आ जाती है तो सराय काले खां जैसे मामलों मे इनके मुँह से चूँ तक नहीं निकलती। दलितों को ये समझना होगा कि उन पर होने वाले अत्याचारों का इस पूरी जमात ने सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाया है और दलितों के साथ होने वाली किसी भी घटना का इस्तेमाल राजनीतिक महत्वाकांक्षा के हिसाब से किया है।

भारत मे खुद को दलितों का सबसे बड़ा शुभचिंतक होने का दावा करने वाले चंद्रशेखर रावण और उनकी भीम आर्मी ने दलितों पर होने वाले अत्याचार की घटनाओं को भी सलेक्टिव नजरिए से देखा है और जिन घटनाओं मे मुस्लिमों की भागीदारी थी उनके खिलाफ किसी तरह का विरोध करने की जहमत नहीं उठाई है।

वास्तव में इन तथाकथित दलित संगठनों और इनके नेताओं को दलितों के भले से कोई लेना देना नहीं है और ये लोग दलितों के खिलाफ होने वाली किसी भी घटना का इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए करते हैं।

दलितों को अगर अपनी स्थिति मे कोई सुधार करना है तो इन जैसे लोगों को अपना नेता मानना बंद करना होगा और स्वयं को मजबूत बनाने की तरफ काम करना होगा।

चंद्रशेखर रावण, जिग्नेश मेवानी, उदित राज, दिलीप मण्डल, इन जैसे लोगों ने दलितों को वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है और इससे दलितों को कोई फायदा नहीं होने वाला।

दलितों को ये समझना होगा कि उनका भला तभी हो सकता है जब वे खुद को किसी राजनीतिक विचारधारा के खिलाफ एक हथियार बनने से रोक पाएं, फिर चाहे वह विचारधारा कांग्रेस की हो या फिर बीजेपी की।

दलितों के सबसे बड़े दुश्मन वो लोग हैं जो खुद को दलितों के सबसे बड़े नेता होने का दावा करते हैं। दलितों को अपनी तरक्की के लिए इन जैसे नेताओं से पीछा छुड़ाना होगा और अपने समुदाय मे से ही भीमराव अंबेडकर जैसे लीडर पैदा करने होंगे।