पाकिस्तान में RAW के जासूस होंगे और सुरक्षित – DRDO और ISRO साथ मिलकर विकसित करेंगे नई संचार तकनीक

भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) साथ मिलकर एक नई तकनीक पर काम कर रहे हैं। इसके विकसित होने के बाद पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन देशों की जमीन पर सक्रिय भारत के जासूसों के लिए अपनी एजेंसी RAW से संपर्क करना बेहद आसान हो जाएगा और इसमें उनके पकड़े जाने का भी खतरा नहीं होगा।

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो अपने चंद्रयान – 3 और आदित्य – L1 मिशन के लिए चर्चा में रहा है। वहीं दूसरी ओर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानि डीआरडीओ भी समय समय पर विभिन्न मिसाइलों और देश मे ही विकसित हथियारों का परीक्षण करते हुए चर्चा में बना रहता है। हालांकि इन दोनों शोध संगठनों का काम अलग अलग है, एक जहां शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में काम करता है तो दूसरा भारत की रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है।

लेकिन अब ये दोनों संगठन विदेशी धरती पर बैठे भारत के जासूसों की सुरक्षा के लिए साथ आए हैं। दोनों संगठन मिलकर एक ऐसी संचार तकनीक पर काम कर रहे हैं जिसे अभी दुनिया में कोई देश विकसित नहीं कर पाया है। इस तकनीकी के तहत विशेष प्रकार के सैटेलाइट फोन भारतीय जासूसों के लिए डीआरडीओ विकसित करने जा रहा है।

वहीं दूसरी ओर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) इन सैटेलाइट फोन के संचालन के लिए एक विशेष फ्रीक्वन्सी से युक्त उपग्रह का निर्माण कर रहा है जो केवल इन्हीं डिवाइसेस पर काम करेगी। इस फ्रीक्वन्सी को किसी भी तरह से पकड़ा नहीं जा सकेगा और जासूसों का भारतीय एजेंसियों के साथ संचार पूरी तरह से सुरक्षित रहेगा।

इस तकनीक के या जाने के बाद से भारतीय जासूसों की विदेशी धरती पर सुरक्षा पुख्ता हो जाएगी और वे बिना किसी तनाव के इकट्ठा की गई जानकारी को भारत पहुँचा सकेंगे।

अभी तक इस काम को करने के लिए जिन तकनीकों का सहारा लिया जाता रहा है उनके इंटेरसेप्ट किये जाने की संभावना काफी ज्यादा रहती है। इंटेरसेप्ट किये जाने की स्थिति में जासूस को दुश्मन देश की एजेंसियों द्वारा पकड़ लिया जाता है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में बंधे होने के कारण कई बर इन जासूसों को भारतीय स्वीकार करने से मना करना पड़ता है। इस तरह की स्थिति आपने कई बॉलीवुड फिल्मों जैसे बेबी आदि में देखी होगी।

कैसे काम करेगी ये तकनीक

इस तकनीक के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) एक उपग्रह का निर्माण कर रहा है, जिसमे कुछ ऐसी फ्रीक्वन्सी के ट्रांसपॉन्डर्स लगे होंगे जिनका इस्तेमाल संचार के क्षेत्र में अभी तक नहीं किया गया है। ये ट्रांसपॉन्डर्स संचार के लिए सामान्यतः प्रयोग की जाने वाली फ्रीक्वन्सी से अप्रभावित रहेंगे और इन्हे डीआरडीओ द्वारा विकसित विशेष प्रकार के रिसीवर द्वारा ही एक्सेस किया जा सकेगा। इस तरह के रिसीवर को डीआरडीओ द्वारा विकसित एक सैटेलाइट डिवाइस मे इंस्टॉल किया जाएगा जो बाद में भारतीय एजेंटों को उपलब्ध करवा दिया जाएगा।

जिस फ्रीक्वन्सी पर डीआरडीओ और इसरो मिलकर काम कर रहे हैं वह अभी तक दुनिया मे प्रयोग की जा रही इंटेरसेप्ट यंत्रों के लिए एक तरह से अदृश्य रहेगी। दुश्मन देशों की एजेंसियों को इस स्थिति में पता ही नहीं चलेगा कि उनके देश से किसी भी तरह का संचार स्थापित किया जा रहा है। इस तरह से भारतीय जासूस इकट्ठा की गई जानकारी को अपने देश सुरक्षित रूप से भेज पाएंगे।

अभी कैसे जानकारी भारत भेजते हैं जासूस

वर्तमान में भारतीय जासूस इकट्ठा की गई जानकारी को वापस भारत भेजने के लिए संचार के परंपरागत साधनों पर निर्भर करते हैं। इसके लिए वह सामान्य फोन लाइंस के अलावा मोर्स कोड या फिर अन्य जासूसों का इस्तेमाल करते हैं। संचार के इन साधनों में सामान्यतः टेलीफोन संचार के लिए प्रयोग की जा रही फ्रीक्वन्सी ही इस्तेमाल की जाती है। इस सामान्य फ्रीक्वन्सी को दूसरे देशों की एजेंसियों द्वारा विभिन्न उपकरणों का प्रयोग करके पकड़ा जा सकता है।

इसके अलावा अन्य जासूसों का इस्तेमाल करके सूचना पहुंचाने की स्थिति में उनके पकड़े जाने का खतरा तो बना ही रहता है, उनके दूसरी एजेंसी से मिल जाने की भी संभावना होती है।

अगर कभी ये डिवाइस दुश्मन देश के हाथ लग गई तो क्या होगा

यहाँ पर यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि अगर यह डिवाइस कभी दुश्मन देश की एजेंसियों के हाथ लग गई तो क्या होगा। ऐसी स्थिति में इसकी तकनीक का खुलासा होने का खतरा भी है। हालांकि डीआरडीओ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस डिवाइस के दूसरे देश के हाथ लगने की स्थिति में भी यह उनके किसी काम की नहीं रहेगी।

दरअसल हर एक डिवाइस को ऑपरेट करने के लिए एक विशेष कोड़ की आवश्यकता होगी। इस कोड़ को डालने के बाद ही डिवाइस का विशेष सैटेलाइट से संपर्क स्थापित हो पाएगा। संपर्क स्थापित होने के बाद भी डिवाइस तभी काम करेगी जब संबंधित भारतीय एजेंसी संचार निवेदन को सत्यापित करेगी। इसलिए दुश्मन देश के हाथ में इस डिवाइस के लग जाने के बाद भी यह उनके लिए एक खिलौना फोन से ज्यादा उपयोगी नहीं होगी।

डीआरडीओ और इसरो के वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक को पूरी तरह से तभी एक्सेस किया जा सकता है जब इससे संबंधित उपग्रह को भी नियंत्रण में ले लिए जाए। इसलिए यह तो साफ है कि इस तकनीक को पकड़ा जाना संभव नहीं होगा।

इस तकनीक के आ जाने के बाद भारतीय जासूसों के लिए सूचनाओं का आदान प्रदान काफी आसान हो जाएगा और इसके साथ ही देश की सुरक्षा में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।