आज जैन परंपरा के महान संत, मुनि तरुण सागर जी की पुण्य तिथि है। पाँच वर्ष पहले आज ही के दिन तरुण सागर जी महाराज ने जैन परंपरा के अनुसार संथारा के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। तरुण सागर जी देश भर में अपने कडवे प्रवचनों के लिए विख्यात थे। उन्होंने अपने कडवे प्रवचनों के द्वारा समाज में व्याप्त बुराइयों पर सीधा प्रहार किया और समाज को एक नई राह दिखाई।
आइए जानते हैं मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज के जीवन परिचय के बारे में…
मध्यप्रदेश के दमोह में हुआ जन्म
मुनिश्री तरुण साग़र जी महाराज का जन्म 26 जून, 1967 को मध्यप्रदेश के दमोह के गाँव गुहजी में हुआ। उनके बचपन का नाम पवन कुमार था। उनके पिताजी का नाम श्री प्रताप चंद जैन और माताजी का नाम श्रीमती शांतिबाई जैन था। सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय रखने के लिए विख्यात तरुण सागर जी के बारे में कहा जाता है कि वे जलेबी खाते हुए संत बन गए थे।
राजस्थान के बागडोगरा के संत पुष्पदन्त सागर जी ने दिलाई दीक्षा
मुनि तरुणसागर जी महाराज ने एक बर मीडिया से बात करते हुए बताया कि बचपन में उन्हे जलेबियाँ बहुत पसंद थी। ऐसे ही कक्षा 6 में पढ़ते हुए किसी दिन स्कूल से घर आते समय वह जलेबियाँ खरीद कर खा रहे थे। पास ही में आचार्य पुष्पधनसागर जी का प्रवचन चल रहा था। वह कह रहे थे कि तुम भी भगवान बन सकते हो। बस यही सुनकर मुनिश्री ने संत परंपरा अपना ली और बचपन के पवन कुमार हमारे सामने क्रांतिकारी संत तरुणसागर जी के रूप में सामने आए।
जब मुनिश्री ने संत परंपरा को ग्रहण किया तब उनकी आयु मात्र 13 वर्ष थी। जबकि 20 वर्ष की आयु में वह दिगम्बर संत बन गए थे। दिगम्बर का अर्थ होता है दिग + अम्बर, अर्थात दिशायें ही जिसके वस्त्र हो।
अपने कडवे प्रवचनों से पाई ख्याति, सामाजिक मुद्दों पर खुलकर रखते थे राय
मुनिश्री तरुणसागर जी महाराज देशभर में अपने मुखर व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध थे। वह विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर मुखर होकर अपनी राय रखते थे और सामाजिक बुराइयों का खुलकर विरोध करते थे। उनकी विचारों की इस मुखरता को कडवे प्रवचनों के नाम से प्रसिद्धि मिली। कडवे प्रवचन आज पुस्तक के रूप में भी उपलब्ध है और समाज को निरंतर नई दिशा दिखा रहे हैं।
मध्यप्रदेश और हरियाणा की विधानसभाओं में भी दिए कडवे प्रवचन
मुनिश्री तरुण सागर जी महाराज के कडवे प्रवचन इतने प्रसिद्ध थे कि मध्यप्रदेश और हरियाणा की विधानसभाओं ने भी उन्हे प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया। वहाँ उन्होंने विधानसभा के अधिकारियों और विधायकों को भी अपने कडवे प्रवचनो से कृतार्थ किया। मध्यप्रदेश में तो वह राजकीय अतिथि के तौर पर स्वीकृत थे।
हरियाणा विधानसभा में उनके प्रवचन पर काफी विवाद भी हुआ था। दरअसल संगीतकार विशाल ददलानी ने हरियाणा विधानसभा में मुनिश्री के प्रवचन पर अमर्यादित टिप्पणी कर दी थी। इसके बाद समस्त जैन समाज ने एकजुट होकर विरोध जताया।
विशाल ददलानी को कान पकड़कर मांगनी पड़ी माफी
हरियाणा के शिक्षामंत्री रामबिलाश शर्मा द्वारा मुनिश्री को विधानसभा में प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया था। जब मुनिश्री विधानसभा में प्रवचन देने के लिए पहुंचे तो वह अपनी दिगम्बर अवस्था में ही थे, अर्थात बिना कपड़ों के ही थे। इस पर संगीतकार विशाल ददलानी ने टिप्पणी की थी कि, ‘अगर आपने इन लोगों के लिए वोट दिया है तो आप आप इस बकवास के लिए जिम्मेदार हो। नो अच्छे दिन जस्ट नो कच्छे दिन।’
इस टिप्पणी के बाद विशाल को जैन समाज के साथ साथ हिन्दू समाज का भी विरोध झेलना पड़ा था और उनकी जमकर फजीहत हुई थी। हालांकि बाद में विवाद बढ़ता देखकर विशाल ददलानी ने कान पकड़कर और जैन परंपरा के अनुसार पंचमाफ़ी मांग ली थी। मुनिश्री तरुणसागर जी महाराज ने भी बड़ा दिल दिखाते हुए विशाल को माफ कर दिया था।
जैन परंपरा संथारा के द्वारा शरीर त्यागकर मोक्ष पद को प्राप्त हुए
मुनिश्री तरुणसागर जी महाराज को पीलिया होने के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। वहाँ स्वास्थ्य में सुधार ना होता देख उन्होंने उपचार करवाना बंद कर दिया और चातुर्मास स्थल पर जाने का निर्णय लिया।
बाद में मुनिश्री ने अपने गुरु पुष्पदन्त सागर जी कि अनुमति से संथारा अथवा संलेखना साधना शुरू कर दी थी। इसी साधना के द्वारा 1 सितंबर, 2018 को उन्होंने नश्वर शरीर को त्यागकर मोक्षपद प्राप्त किया।
क्या है संलेखना/संथारा
जैन परंपरा के अनुसार मृत्यु को समीप देखकर खानपान का त्याग कर देना संलेखना या संथारा कहलाता है। इस साधना में मनुष्य खानपान का त्याग कर पहले सिर्फ जल ग्रहण करता है और कुछ दिनों के बाद जल का भी त्याग कर दिया जाता है। इसे जैन परंपरा में जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने 2015 में संलेखना को आत्महत्या जैसा बताते हुए इस पर रोक लगा दी थी, जिसका जैन समाज ने विरोध किया था। बाद में दिगम्बर जैन परिषद की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। जैन परंपरा के अनुसार संथारा या संलेखना को मोक्ष पाने का साधन माना जाता है।