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Photo Source: ohmyrajasthan.com |
हमारे महानगरों में लिव इन रिलेशनशिप का चलन तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि भारत में अभी भी इस तरह के संबंधों को नैतिक दृष्टि से सही नहीं माना जाता है और अक्सर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लड़के लड़कियों को अलग अलग तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
लेकिन अगर हम आपसे कहें कि भारत में ही एक ऐसी भी जनजाति है जिसमे लिव इन रिलेशनशिप को पूरी तरह मान्यता मिली हुई है तो आप शायद चौंक जाएंगे। एक ऐसी जनजाति जहां लड़के लड़की बिना शादी किये ही एक दूसरे के साथ रहते है, बच्चे पैदा करते हैं। बाद में उनके बच्चे ही अपने माता पिता की शादी करवाते हैं और बारात में भी शामिल होते हैं।
दापा प्रथा के तहत यहाँ दो दिनों का एक मेला लगता है। इस मेले में समुदाय के लड़के लड़कियों की मुलाकात होती है और एक दूसरे को पसंद आ जाने पर वे दोनों सहमति से भाग जाते हैं। इसके बाद वापस लौट कर आने पर वे बिना शादी के ही पति पत्नी की तरह रह सकते हैं।
मेले के अलावा लड़के लड़कियों को प्रेम संबंधों की भी छूट होती है। एक दूसरे को पसंद करने वाले लड़के-लड़कियों पर इस समाज में किसी तरह की कोई बंदिश नहीं लगाई जाती है और जोड़ा साथ रहने तथा शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए स्वतंत्र होता है।
गरासिया समाज में ही एक दूसरी परंपरा के अनुसार शादी करवाने के लिए लड़के लड़की को मिलवाया जाता है और एक दूसरे को पसंद कर लेने पर पहले उन्हे लिव इन में रहकर बच्चे पैदा करने होते हैं। बच्चे पैदा होने के बाद ही उन्हें शादी करने की अनुमति दी जाती है। अगर किसी कारणवश जोड़े के बच्चे नहीं होते तो वे दोनों अलग होने के लिए और किसी अन्य के साथ रिश्ता बनाने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
गरासिया समाज में किसी भी तरह से शादी करने के लिए पहले लिव इन में रहना और फिर बच्चे पैदा करना जरूरी होता है।
कई बार बच्चे होने के बाद भी ये लोग परिवार की जिम्मेदारियों के चलते शादी को टालते रहते हैं। ऐसे में कई जोड़े बूढ़े होने तक शादी नहीं कर पाते हैं। बाद में जब इनके परिवार में किसी की शादी होती है तो ये भी उसी समारोह में शादी कर लेते हैं या फिर परिवार के सक्षम होने पर इनके बच्चे या पोते इनकी शादी करवाते हैं। इसलिए माता पिता की शादी में बेटे-बेटी तो कई बार पोते-पोती भी शामिल होते हैं।
कैसे शुरू हुई ये परंपरा:
गरासिया समाज में ही प्रचलित कहानी के अनुसार चार भाई हुआ करते थे। कहते हैं कि वे कहीं और जाकर बसे तो तीन भाइयों ने तो शादी की जबकि एक भाई कुंवारी लड़की के साथ लिव इन में रहने लगा। कहते हैं कि शादी करने वाले भाइयों की कोई संतान नहीं हुई लेकिन लिव इन में रहने वाले भाई को तीन बच्चे हुए। तब से ही गरासिया समाज के लोगों ने इस परंपरा को अपना लिया जो आज तक जारी है।
महिला प्रधान है गरासिया समाज:
गरासिया समाज में महिलाओ की स्थिति काफी मजबूत होती है। यहाँ शादी करने के लिए भी लड़के वालों को कन्या के मूल्य के रूप में लड़की वालों को कुछ पैसे देने होते हैं। इस पैसे का कुछ हिस्सा समाज के पंचों के लिए होता है और बाकी हिस्से को लड़की के माता पिता या तो अपने सगे संबंधियों में बाँट देते हैं या फिर अलग अलग तरीकों से लड़की को ही लौटा देते हैं। किसी भी तरह से शादी करने के लिए शादी का पूरा खर्च भी लड़के वालों को ही उठाना पड़ता है।
इसके अलावा गरासिया समाज में लड़की को अपना लिव इन पार्टनर बदलने की भी पूरी आजादी होती है। इस स्थिति में लड़की का नया पार्टनर कुछ मुआवजा उसके पुराने पार्टनर को देता है, साथ ही कन्या धन के रूप में लड़की के माता पिता को भी मूल्य चुकाना पड़ता है।
खुद को मानते हैं चौहानों के वंशज:
गरासिया समाज खुद को चौहान राजपूतों का वंशज मानता हैं। इनका दावा है कि गरासिया गौत्र बप्पा रावल की संतानों से शुरू हुआ था।
गरासिया समाज अपनी उत्पत्ति राजस्थान के गोगुंदा से मानते हैं वहीं कुछ का मानना है कि इनके वंशज पूर्व में अयोध्या के निवासी थे। आज गरासिया जनजाति के लोग राजस्थान के सिरोही, उदयपुर, पाली और प्रतापगढ़ जिलों के अलावा गुजरात के भी कुछ हिस्सों में रहते हैं।