✍️ दिव्या
हिजाब पर चल रहे मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने ब्रेक लगाते हुए अपना फैसला सुना दिया है। कर्नाटक हाई कोर्ट का कहना है कि “हिजाब इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है” और इसी आधार पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब पर रोक लगा दी।
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Photo Source: The Hindu |
असल में हिजाब का यह विवाद मात्र चेहरा ढकने वाले काले कपड़े पर केंद्रित नहीं है बल्कि इस कपड़े के टुकड़े को धार्मिक रूप दे दिया गया है। धार्मिक रूप धारण करते ही हिजाब अब इस्लामिक विवाद का रूप ले चुका है और यही कारण है कि इस मामले को अब सुप्रीम कोर्ट तक ले जाया गया है।
क्यों चर्चा में आया हिजाब?
हिजाब विवाद की शुरुआत 2022 के जनवरी से होती है जिसकी जड़ें कर्नाटक के उडुपी में गड़ी हुई है। उडुपी के जूनियर कॉलेज में जब 6 मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहन कर कॉलेज में प्रवेश करती हैं तो कॉलेज प्रशासन उन्हें हिजाब पहन कर अंदर आने की अनुमति नहीं देते हैं। छात्राओं का कहना है कि पहले दिन उन्हें कॉलेज से वापस भेज दिया गया और अगले दिन बिना हिजाब के आने को कहा गया। बाद में छात्राओं ने दूसरे दिन भी हिजाब पहन कर कॉलेज में प्रवेश करने की कोशिश की और कॉलेज प्रशासन ने उन्हें फिर से रोका। इस बात से रुष्ठ छात्राओं ने अपने अभिभावकों को इस मामले के विषय में बताया साथ ही प्रेस को बुला कर इस मामले को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया। मीडिया द्वारा विवाद को लाइम–लाईट में लाया गया जिससे देश भर के अलग–अलग कोने में रह रहे मुस्लिम समुदायों ने उन छात्राओं का जम कर समर्थन किया साथ ही इस मामले के आधार पर तकरीबन 8 पीआईएल भी दर्ज किए।
धर्म और शिक्षा में ज्यादा जरूरी क्या है?
भारतीय संविधान अपने प्रत्येक नागरिकों को धर्म एवं शिक्षा, दोनों की स्वतंत्रता प्रदान करता है। ऐसे में प्रत्येक भारतीय नागरिक अपने धर्म और शिक्षा के विषय में स्वंतत्र है परंतु शिक्षा और धर्म दोनों को एक साथ जोड़ना तथा एक ही पैमाने पर तौलना उचित नहीं होगा। शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जहां प्रत्येक विद्यार्थी बराबर है अर्थात उनमें किसी भी प्रकार का भेद–भाव नहीं है। इसी कारण प्रत्येक स्कूल में सभी विद्यार्थियों को समान यूनिफॉर्म दिया जाता है। एक ओर जहां स्कूल यूनिफॉर्म देकर सभी को बराबरी का दर्जा दिया जा रहा है वहीं धर्म से जुड़ी शिक्षा या धार्मिक वस्तु इत्यादि उस परिवेश में धार्मिक भेद–भाव की उपज करते हुए प्रतीत होते हैं। गले में केसरिया चुनरी पहनना या चेहरे को हिजाब से ढकना कहीं न कहीं धर्म का प्रतिन्धित्व सा करता हुआ लगता है। इसी कारण धर्म और शिक्षा दोनों अपने आप में जरूरी है परंतु दोनों को अलग रखना उचित होगा।
हिजाब विवाद धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात?
हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला आते ही कुछ इस्लामिक तबकों के लोगों ने इसे गैर–संवैधानिक बताया। उनका कहना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उन्हें किसी भी धार्मिक रीति रिवाज एवं पर्सनल लॉ की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता उनका मूल अधिकार है जिस आधार पर हिजाब पहनना उचित है, परंतु संविधान के अनुच्छेद 25 की बात करें तो वहां उल्लेखित है कि संविधान बनने से पूर्व चल रहे पर्सनल लॉ भारत में तभी तक लागू रहेंगे जब तक की वो वर्तमान के संविधान पर खतरा ना हो। इसी आधार पर तलाक–ए–बिद्दत को भी समाप्त कर दिया गया जबकि वो इस्लाम के पर्सनल लॉ का मामला था। संवैधानिक तौर पर देखा जाए तो हिजाब पर पाबंदी लगाना किसी भी प्रकार से धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात बिलकुल भी नहीं है।
कर्नाटक हाई कोर्ट का क्या है कहना?
कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्कूल एवं कॉलेजों में हिजाब पहन कर जाने पर पाबंदी लगा दी है। हाई कोर्ट का कहना है कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है इसी कारण हिजाब पहन कर स्कूल या कॉलेजों में प्रवेश पर इजाजत नहीं दी जाएगी। साथ ही हिजाब मामले में दर्ज सभी जनहित याचिकाओं को भी हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है। वहीं इस्लाम के शरिया, कुरान इत्यादि धर्म ग्रंथों में हिजाब के अनिवार्य उपयोग से जुड़े कोई भी तथ्य उल्लेखित नहीं है। कुरान में हिजाब का जिक्र 7 बार अवश्य है परंतु महिला द्वारा इसके उपयोग पर किसी भी प्रकार से प्रकाश नहीं डाला गया है।