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✍️ अमृत राज झा
यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे घमासान की चर्चा जहां विश्व भर में हो रही है वहीं लोग ऐसे भी कयास लगा रहे थे की चीन अपनी मित्रता का प्रमाण रूस के समर्थन के रूप में देगा। 25 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आयोजित तत्कालीन बैठक में भारत, यूएई समेत चीन ने भी वोट में हिस्सा न लेने का फैसला किया। चीन द्वारा रूस का समर्थन न करने की वजह जानने के लिए कुछ मापदंडों को समझना आवश्यक है।
चीन का यूक्रेन में निवेश
यूक्रेन में चीन के बढ़ते निवेश को देख कर दोनों देशों के मैत्रिक सम्बन्ध का अंदाजा लगाया जा सकता है। वर्ष 2016 से वर्ष 2021 तक यूक्रेन में चीन का निवेश 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 260 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। निवेश के साथ–साथ चीनी बैंकों ने यूक्रेन को लगभग 1 बिलियन डॉलर का ऋण भी दिया है। वहीं चीन के कई बड़ी कंपनियों का भी यूक्रेन में भारी निवेश है। व्यापारिक नजरिए से यूक्रेन पर रूस का प्रहार चीन के लिए आर्थिक हानि का परिणाम साबित होगा।
चीन एवं यूक्रेन का व्यापारिक संबंध
चीन और यूक्रेन के व्यापारिक संबंधों की बात करें तो ये संबंध इतना पुराना है की चीन का प्रथम विमानवाहक पोत द लियोनिंग भी यूक्रेन से खरीदा गया था। वर्ष 2001 में जहां यूक्रेन के जीडीपी में चीन का 2% योगदान था वहीं वर्ष 2021 में ये आंकड़ा बढ़कर 11% हो गया है। वर्तमान समय में चीन यूक्रेन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। यूक्रेन चीन को मक्के के साथ साथ विभिन्न प्रकार के सैन्य उपकरणों की भी आपूर्ति करता है, जिनमें विमान के लिए टर्बोफैन इंजन, टैंक के लिए डीजल इंजन और हवाई युद्ध करने वाली मिसाइलों के लिए गैस टर्बाइन इत्यादि शामिल है। यूक्रेन में चीन के बढ़ते व्यापार को देख कर यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने उत्साहपूर्वक ये घोषणा तक कर दी थी की यूक्रेन यूरोप के लिए चीन का पुल बन सकता है।
कौन से उलझन में फसा चीन?
चीन के लिए सबसे बड़ी समस्या के रूप में चीन का व्यापारिक विघटन उभर कर सामने आ रही है। चीन का व्यापारिक संबंध रूस के साथ साथ यूक्रेन से भी उतना ही मजबूत है। पिछले वर्ष चीन ने रूस के साथ 146 बिलियन एवं यूक्रेन के साथ लगभग 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया है। चीन यूक्रेन के द्वारा यूरोपीय बाजार में प्रवेश कर अपना व्यापार बढ़ाना चाहता था, परंतु यूक्रेन रूस विवाद चीन के आर्थिक ढांचे पर प्रहार साबित हुआ। इन कारणों के वजह से ही चीन ने अपना बचाव करते हुए संतुलन बरकरार रखने का प्रयास किया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हुए वोट में वोट न करने का फैसला लिया।
क्या है चीन का कहना ?
चीन के एम्बेसडर झांग जून ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हुए वोट पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया न देने पर बयान देते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया है। उनका कहना है की इस विवाद को शांति से सुलझाने में ही दोनों पक्षों का लाभ है। किसी भी प्रकार का गलत निर्णय आग में घी के तरह काम करेगा। इसी वजह से चीन ने वोटिंग से परहेज कर कागजी रूप से रूस का समर्थन नहीं किया है।