✍️ आशुतोष चौबे
भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा ने कहा है कि “यह धारणा एक मिथक है कि न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।“
भारत के मुख्य न्यायाधीश
ने यह बात विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश
स्थित एक महाविद्यालय में “भारतीय न्यायपालिका–भविष्य की चुनौती“ विषय पर अपने संबोधन में कही भारत के
मुख्य उन्होंने आगे कहा कि इन दिनों न्यायाधीश खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे
हैं , इसे बार-बार दोहराने का
चलन हो गया है । उन्होंने आगे बताया कि यह सिर्फ एक मिथ है । तथ्य यह है कि
न्यायपालिका की इस प्रक्रिया में शामिल कई हित धारकों में से महज एक हितधारक हैं।
इसी क्रम में क्रम में उन्होंने
आगे बताया कि इस प्रक्रिया में कई पदाधिकारी शामिल है जिनमें केंद्रीय कानून
मंत्रालय राज्य सरकार राज्यपाल उच्च न्यायालय का कॉलेजियम खुफिया ब्यूरो और अंततः
शीर्ष में कार्यकारी शामिल है। उन्होंने आगे कहा कि मैं यह देखकर दुखी हूं कि
जानकार व्यक्ति भी ऐसी धारणा फैला रहा है।
सुप्रीम कोर्ट
में कैसे होती है जजों की नियुक्ति
अनुच्छेद 124(2) सर्वोच्च न्यायालय तथा अनुच्छेद 217
(1) के तहत हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान है।
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राष्ट्रपति
नियुक्त करता है ( सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों से परामर्श )
ऐसे जज जिनसे राष्ट्रपति
परामर्श लेना उचित समझे इसी आधार पर किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति
करता है इसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश का परामर्श लेना जरूरी होता है ( सर्वोच्च
न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति में )।
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भारत के मुख्य
न्यायाधीश की नियुक्ति –
भारत के मुख्य न्यायाधीश
की नियुक्ति के बारे में संविधान के अनुच्छेद 124 दो में विस्तार से जानकारी नहीं
दी गई है।
वर्तमान में विधि मंत्री ने वृद्ध होने
वाले मुख्य न्यायाधीश से सलाह लेते हैं इसके बाद विधि मंत्री पूर्व मुख्य
न्यायाधीश के सलाह से प्राप्त नाम को प्रधानमंत्री के पास भेजते हैं उसके बाद
प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सुझाव देते हैं कि इस नाम के व्यक्ति की नियुक्ति भारत
के मुख्य न्यायाधीश के रूप में की जानी चाहिए।
कॉलेजियम
व्यवस्था क्या है और इसका इतिहास –
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इस व्यवस्था के
माध्यम से सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है।
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कॉलेजियम
व्यवस्था का उल्लेख संविधान में नहीं है।
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इसे किसी कानून
के द्वारा भी निर्मित नहीं किया गया है यानी संसद के द्वारा भी कॉलेजियम व्यवस्था
स्थापित नहीं की गई है।
यह व्यवस्था आखिर
कहां से आई
परामर्श शब्द को
लेकर खींचतान – परामर्श शब्द को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच में अक्सर खींचतान
रहता है कि आखिर परामर्श के मामले में किसे कितना महत्व दिया जाए? न्यायपालिका को
महत्त्व दिया जाय या कार्यपालिका अपने स्तर से जजों की नियुक्ति कर ले या सुप्रीम
कोर्ट के जो जज है उनकी नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का परामर्श
लेना कितना उचित है या नहीं? यह पूरा मामला उलझा हुआ है।
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सन 1973 से पहले
भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता को महत्व दिया जाता था किंतु
1973 के बाद मुख्य न्यायाधीश के लिए वरिष्ठता के आधार को दरकिनार किया गया।
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इसके बाद खींचतान
आगे बढ़ गई इसी के बाद तीन जजों के केस की चर्चा की जाती है इसी के
माध्यम से कॉलेजियम व्यवस्था सामने आती है।
(1)
1981 : एस. पी गुप्ता बनाम भारत संघ
इसमें यह बात कही
गई कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की सहमति अनिवार्य नहीं है किसी जज
की नियुक्ति के संबंध में।
(2)
1998 : सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ
भारत के मुख्य न्यायाधीश जजों की नियुक्ति के मामले में दो
वरिष्ठ एवं जज के साथ परामर्श कर सकते हैं, इसी केस में कॉलेजियम व्यवस्था सामने आई।
(3)
1998 : राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी गई
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जो परामर्श की बात
की जा रही है उसे स्पष्ट करें।
इसे स्पष्ट करते हुए
इसमें बताया गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ
परामर्श कर जजों की नियुक्ति कर सकते हैं।
इस तरह तीन जजों का केस चर्चा में रहा। वर्तमान
में उपरोक्त कॉलेजियम व्यवस्था को किसी भी देश की नियुक्ति में अपनाया जाता है
जब एनडीए सरकार
में आई तब –
(1)
2014: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग
तत्कालीन सरकार ने 99वां संविधान संशोधन के द्वारा इसे स्थापित किया और इसमें सरकार ने बताया कि अब जजों की
नियुक्ति में इस आयोग का सहारा लिया जाएगा।
(2)
2015: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने इस आयोग को असंवैधानिक बताया
इसे मानने से इनकार कर दिया।
जजों की नियुक्ति
से जुड़ी चुनौतियां –
(1)
कॉलेजियम
व्यवस्था एक लंबी प्रक्रिया है।
(2)
गुरुद्वारा जजों की सिफारिश की बात कही जाती है।
(3)
लैंगिक समानता – कहा जाता है कि यह समानता हमेशा से बनी हुई है
वर्तमान में 4 महिला न्यायाधीश ही है इसे भी एक चुनौती के रूप में देखा जाता है
क्योंकि महिला जजों की संख्या बढ़ाना कॉलेजियम व्यवस्था के ऊपर निर्भर करता है।
जजों की नियुक्ति के लिए समाधान –
(1)
कॉलेजियम व्यवस्था की भूमिका – कॉलेजियम व्यवस्था यहां समाधान के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, कॉलेजियम व्यवस्था जितनी तेजी से काम करेगा
उतनी ही तेजी से सुप्रीम कोर्ट के जजों की जो रिक्तता है उसे भरा जा सकता है
(बता दें 2019 में अब तक जजों की संख्या में
परिवर्तन किया गया है, अभी वर्तमान में एक मुख्य
न्यायाधीश और 33 अन्य न्यायाधीशों का प्रावधान है किंतु मौजूदा समय में सुप्रीम
कोर्ट में एक न्यायाधीश और 32 अन्य न्यायाधीश हैं और अभी भी एक पद रिक्त है।)
(2)
न्यायपालिका–कार्यपालिका के बीच समन्वय – न्यायपालिका और
कार्यपालिका के बीच जो खींचतान है, वह कम हो न्यूनतम
हो एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो ना कि नीचा दिखाने वाला समन्वय स्थापित हो।
जहां एक तरफ भारत की संसद सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या
निर्धारित करती है वहीं न्यायपालिका में जो सर्वोच्च न्यायालय है यह सबसे ऊपर माना
जाता है तो ऐसी स्थिति में समाधान यही होगा कि आपसी साझेदारी के साथ आगे बढ़े यदि
प्रतिस्पर्धा भी हो तो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो।