रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले को एक हफ्ता हो चुका है और रूस की सेना अभी तक कीव पर कब्जा नहीं कर पाई है। जबकि पहले ये उम्मीद की जा रही थी कि रूसी सेना दो से तीन दिनों में ही राजधानी कीव सहित पूरे यूक्रेन को अपने नियंत्रण में ले लेगी। ऐसे में रक्षा विशेषज्ञ अब इस बात पर चर्चा करने लगे हैं कि क्या पुतिन यूक्रेन के मामले में फंस गए हैं? हालांकि रूस के नेता और अधिकारी इन दावों को नकार रहे हैं, लेकिन जिस तरह की परिस्थितियाँ हम बनते हुए देख रहे हैं, उससे यह तो साबित होता है कि पुतिन के रणनीतिकारों ने यूक्रेन को काफी कम करके आँका था।
युद्ध के पहले हफ्ते में यूक्रेन ने जिस तरह से रूस का मुकाबला किया है, उसका अनुमान निश्चित तौर पर पुतिन और उनके सैन्य अधिकारियों ने नहीं लगाया होगा। वहीं दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञ भी यही मान कर चल रहे थे कि यूक्रेन रूस की विशालकाय सेना के सामने ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगा।
हालांकि ये अभी युद्ध की शुरुआत ही है और स्थितियां कोई भी रोचक मोड ले सकती हैं।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को उम्मीद रही होगी कि जिस तेजी से उनकी सेना यूक्रेन पर कब्जा करेगी, पश्चिमी देशों को संभलने का भी मौका नहीं मिलेगा और इससे पहले कि वे कोई प्रतिक्रिया दें रूस अपना काम करके निकल चुका होगा। रक्षा विशेषज्ञों का भी अनुमान कुछ ऐसा ही था। हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्सकी ने मैदान छोड़ने से इनकार कर दिया और अपने राष्ट्रपति को मैदान में डटे देख कर यूक्रेन की आम जनता भी रूस के खिलाफ खड़ी हो गई। यही कारण है कि जो जंग दो से तीन दिनों की समझी जा रही थी उसे एक हफ्ते से ज्यादा बीत चुका है।
वहीं दूसरी ओर यूक्रेन के जबरदस्त प्रतिरोध के कारण पश्चिमी देशों को भी समय मिल गया और उनकी तरफ से धीरे धीरे रूस के खिलाफ प्रतिबंध कड़े होते चले गए। ये प्रतिबंध अब रूस की अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित होने लगे हैं।
हालांकि रूस के अधिकारियों को इस तरह के आर्थिक प्रतिबंधों का अंदाजा पहले से रहा होगा और उन्होंने इससे निपटने की योजना बनाई होगी। लेकिन उनकी योजना यूक्रेन के प्रतिरोध की क्षमता पर आधारित रही होगी। रूस के अधिकारियों ने सोचा होगा कि पश्चिम से लगे आर्थिक प्रतिबंधों का सामना चीन के समर्थन से किया जा सकता है। लेकिन अब चीन को यह लगने लगा है कि पश्चिम का गुस्सा उसके खिलाफ भी जा सकता है और वह खुलकर इस मोर्चे पर रूस के साथ आने से कतरा रहा है।
रूस के गलत अनुमान ने नाटो को भी मजबूत होने का मौका दे दिया है
पुतिन ने ये युद्ध इसलिए छेड़ा था, ताकि यूक्रेन नाटो का हिस्सा ना बने। युद्ध के बाद ये तो निश्चित है कि यूक्रेन अगले कुछ वर्षों तक नाटो का हिस्सा बनने के बारे में नहीं सोचेगा और युद्ध से बरबाद हुए बुनियादी ढांचे के पुनर्विकास पर ध्यान देगा। लेकिन दूसरी तरफ फिनलैंड और स्वीडन जैसे देश अपनी सुरक्षा के लिए नाटो की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं। बहुत संभव है कि आने वाले समय में हम नाटो के सदस्य देशों की संख्या मे बढ़ोतरी देखें।
वहीं, यूक्रेन से जंग और पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंधों के बाद फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल होने से रोकने के लिए एक और यूक्रेन जैसा सैन्य अभियान कर पाना भी रूस के लिए मुश्किल होगा। ये भी हो सकता है कि रूस की कमजोर स्थिति को देखते हुए वो देश जो अभी तक रूस के डर से नाटो में शामिल होने से बचते रहे थे, अब उसमे शामिल होने के प्रयास तेज कर दें।
कमजोर आर्थिक स्थिति रूस को चीन का पिछलग्गू बनने पर मजबूर कर सकती है
हालांकि चीन पश्चिम के आर्थिक प्रतिबंधों के डर से रूस के साथ खुलकर आने से बच रहा है, लेकिन वह इस स्थिति का फायदा उठाने की स्थिति में है। आर्थिक प्रतिबंधों के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए रूस का चीन की तरफ जाना निश्चित है। ऐसे में रूस को चीन की मनमानी का भी सामना करना पड़ सकता है।
आज दुनिया में चीन का विदेशी मुद्रा भंडार सबसे बड़ा है और साथ ही उसकी कर्ज देने की क्षमता भी सबसे ज्यादा है। ऐसे में रूस अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए चीन के साथ वैसा ही समझौता कर सकता है जैसा कि ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद किया था।
चीन ने अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद ईरान में 400 बिलियन डॉलर का निवेश किया था और बदले में उससे गैस और तेल की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की थी। अब युद्ध के बाद रूस भी अपनी गैस और तेल के बदले चीन से इसी तरह का कोई समझौता कर सकता है, लेकिन यह रूस में चीन के प्रभावी होने के रूप में सामने आएगा। हो सकता है इसके बाद रूस को चीन की कुछ ऐसी बातों को मानने के लिए मजबूर होना पड़े जिसे अभी तक वह ठुकराता आया है। खास तौर पर चीन, रूस की अंतरिक्ष और रक्षा तकनीक को जरूर हासिल करना चाहेगा, जिससे उसने अभी तक चीन को दूर रखा है।
यह स्थिति कहीं ना कहीं भारत के लिए भी मुश्किलें पैदा करने वाली हो सकती है।
रूस को सैन्य स्तर पर भी शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है
हालांकि यूक्रेन सेना के मामले में रूस के सामने कहीं नहीं ठहरता, लेकिन जैसा प्रतिरोध हम यूक्रेन में देख रहे हैं वह रूस के लिए शर्मिंदगी का सबब बंता जा रहा है। दुनिया में रूसी सैन्य ताकत पर लोग प्रश्न उठाने लगे हैं। ऐसे में अगर रूस बिना किसी बड़ी उपलब्धि के यूक्रेन से बाहर निकलता है तो यह उसकी सैन्य ताकत पर एक धब्बे के रूप में रह जाएगा।
ये भी निश्चित ही है कि रूस इस अभियान को जल्दी से जल्दी खत्म करना चाहता है, क्योंकि जंग में उसे बहुत ज्यादा धन खर्च करना पड़ रहा है। इसलिए यूक्रेन का प्रतिरोध जितना लंबा जाएगा रूस की मुश्किलें उतनी ही बढ़ेंगी। ऐसी स्थिति में अगर रूस बिना किसी संतोषजनक उपलब्धि के अगर यूक्रेन से बाहर निकलता है तो यह आने वाले दशकों तक रूस की सैन्य क्षमता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता रहेगा।
हालांकि अभी बस शुरुआत हुई है और हाल ही के बहुत सारे अनुमानों की ही तरह ये अनुमान भी गलत साबित हो सकते हैं। हो सकता है रूस की योजना ही कुछ और रही हो। ये भी हो सकता है कि पुतिन यूक्रेन के टुकड़े कर दें और पश्चिम और रूस के बीच में एक बफर स्टेट का निर्माण कर दे।
लेकिन ये भी सही है कि युद्ध की शुरुआत ने दुनियाभर के सैन्य विशेषज्ञों को गलत साबित किया है और हो सकता है इसका अंत भी बहुत सारे लोगों को गलत साबित करे।