क्या चीन भी ताइवान पर रूस की तरह एक्शन लेगा?

क्या चीन भी ताइवान पर रूस की तरह एक्शन लेगा?
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रूसी सेना के यूक्रेन पर हमला करने के बाद इस बात कि संभावनाएं बढ़ गई हैं कि चीन भी ताइवान के खिलाफ इसी तरह का एक्शन ले सकता है। चीन ने रूस के हमले के बाद इसका संकेत भी दिया और ताइवान की वायुसीमा में घुसपैठ कर डाली। खबर है कि चीन ने अपने 9 लड़ाकू विमान ताइवान के क्षेत्र में भेज दिए। पिछले एक महीने में यह 12वीं बार है जब चीन ने ताइवान की वायुसीमा का उल्लंघन किया है।

वहीं यूक्रेन के मसले पर भी चीन खुलकर रूस के साथ आ गया है। विशेषज्ञ इस बात कि संभावना जता रहे हैं कि चीन रूस से ताइवान के खिलाफ कार्रवाई में समर्थन की उम्मीद कर रहा है। रूस ने भी चीन को ताइवान को लेकर अपना समर्थन दिखाया है। ऐसे में आने वाला समय ताइवान के लिए मुश्किल भरा हो सकता है।

आइए जानते हैं कि क्या चीन भी ताइवान पर इसी तरह की कार्रवाई करेगा? क्या है चीन-ताइवान का मामला और चीन के लिए ताइवान को हासिल करना कितना आसान या मुश्किल होने वाला है?

यूक्रेन हमले के बाद चीन-ताइवान का मुद्दा क्यों चर्चा में आ गया है?

दरअसल रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से ही ताइवान को लेकर चर्चाएं गरम है। लोग अंदेशा जता रहे हैं कि रूस की ही तरह चीन भी ताइवान पर कब्जा करने की कोशिश कर सकता है। लोगों के इस अंदेशे को तब बल मिला जब हाल ही में चीन ने अपने 9 लड़ाकू विमान ताइवान के एयरस्पेस में भेज दिए।

वहीँ दूसरी ओर यूक्रेन पर हमला करने से पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी ताइवान के मामले पर चीन को समर्थन दे चुके हैं। अपने हालिया चीन दौरे में पुतिन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मिलकर 5300 शब्दों का एक जॉइन्ट स्टेटमेंट जारी किया था जिसमें चीन की ताइवान नीति को समर्थन देने की बात भी शामिल थी। इसके बाद से ही चीन द्वारा ताइवान पर कार्रवाई की मंशा जताई जा रही थी।

इसके अलावा चीन ने अपनी मीडिया को भी रूस-यूक्रेन मुद्दे पर सावधानी बरतने और रूस का समर्थन करने की बात कही थी, जिसे चीनी मीडिया द्वारा गलती से सार्वजनिक कर दिया गया। चीन ने अपने मीडिया से रूस को भावनात्मक और नैतिक समर्थन देने की भी बात की थी।

दूसरी ओर चीन, रूस के यूक्रेन पर हालिया हमले को खुद के लिए एक मौके के तौर पर देख रहा है। चीन की लम्बे समय से दावा करता रहा है कि ताइवान, चीन का ही हिस्सा है और उसके साथ सम्बन्ध रखने वाले किसी भी देश को चीन के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में ताइवान को दुनियाभर में बहुत कम देश ही अपना समर्थन देते हैं। हाल ही में यूरोप के एक छोटे से देश लिथुआनिया को भी इसी मसले को लेकर चीन के गुस्से का सामना करना पड़ा था।

यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका की विफलता चीन के लिए एक मौका

यूक्रेन पर रूस के हमले को रोकने में जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका नाकाम रहे हैं, यह चीन को ताइवान पर कार्रवाई का मौका दे सकता है। यूक्रेन लम्बे समय से रूस के हमले का अंदेशा जता रहा था और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों से मदद की मांग कर रहा था। हालाँकि पश्चिमी देशों के आश्वासन यूक्रेन के कोई काम नहीं आये और अंततः रूस ने उस पर हमला कर ही दिया। यूक्रेनी राष्ट्रपति ने हाल ही में कहा भी था कि नाटो और पूरी दुनिया ने हमें रूस के सामने अकेला छोड़ दिया है।

यूक्रेन के मुद्दे पर दुनिया की ठंडी प्रतिक्रिया कहीं ना कहीं चीन को उत्साहित करेगी और वह इसे एक मौके पर देखते हुए ताइवान के खिलाफ हमले का प्रयत्न कर सकता है। हालाँकि अमेरिका ने ताइवान को सुरक्षा का भरोसा दिया हुआ है, लेकिन ऐसा भरोसा अमेरिका ने यूक्रेन को भी दिया था जिसका कोई फायदा यूक्रेन को मिलता नहीं दिख रहा हैं।

चीन और ताइवान के बीच विवाद क्या है?

चीन और ताइवान के बीच का विवाद दशकों पुराना है, जब चीन में गृहयुद्ध चल रहा था। इस युद्ध में एक तरफ कम्युनिस्ट थे जबकि दूसरी तरफ चियांग काई शेक के नेतृत्व में राष्ट्रवादी कोमिन्तांग थे। इस गृहयुद्ध में कम्युनिस्टों ने राष्ट्रवादियों को हरा दिया। अपनी हार के बाद चियांग काई शेक ताइवान चले गए और उन्होंने वहां रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना की। इसे ही आज ताइवान के नाम से जाना जाता है। जबकि कम्युनिस्टों ने माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना’ की स्थापना की, जो आज का चीन है।

चीन हमेशा से ताइवान को अपना हिस्सा मानता रहा है और इसे अपने अधीन लाने के लिए बलप्रयोग की बात से भी इंकार नहीं करता। हालाँकि वैश्विक परिस्थितियों के चलते चीन अभी तक ताइवान पर कब्ज़ा नहीं कर पाया। लेकिन अब हो सकता है कि रूस और यूक्रेन के विवाद को देखते हुए चीन ताइवान पर कब्ज़ा करने की कोशिश करे।

चीन के लिए ताइवान को हासिल करना कितना आसान होगा?

ताइवान की स्थिति यूक्रेन से थोड़ी अलग है। चीन के लिए ताइवान को हासिल करना निश्चित ही इतना आसान तो नहीं रहेगा जितना रूस के लिए यूक्रेन। यूक्रेन के मामले में अमेरिका खुल कर रूस के सामने नहीं आया क्योंकि अमेरिका के उस क्षेत्र में बहुत ज्यादा हित दिखाई नहीं देते। लेकिन ताइवान के मामले में ऐसा नहीं हैं। अमेरिका चीन को अपने एक प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है। इसके अलावा अमेरिका के दक्षिणी चीन सागर में भी बहुत सारे हित जुड़े हुए हैं। ऐसे में चीन को ताइवान पर कब्ज़ा करने देने का प्रभाव दक्षिणी चीन सागर में भी पड़ेगा और वहां चीन की स्थिति मजबूत होगी। जाहिर है अमेरिका ऐसा बिलकुल नहीं चाहेगा।

इसके अलावा ताइवान भी यूक्रेन की तरह कोई कमजोर राष्ट्र नहीं है। बल्कि ताइवान ने समय के साथ अपनी सेना को बहुत मजबूत बनाया है। अमेरिका ने समय समय पर ताइवान को बहुत से महत्वपूर्ण और प्रभावी हथियारों की आपूर्ति की है, जिनका इस्तेमाल वह चीन के खिलाफ कर सकता है।