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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही मे कॉमन प्रॉस्पेरिटी प्रोग्राम की घोषणा की है। इसे लेकर दावा किया जा रहा है कि इससे देश में अमीर और गरीब के बीच की दूरी कम होगी और देश को गरीबी के दलदल से बाहर निकालने मे मदद मिलेगी। साफ शब्दों मे बात करें तो चीनी राष्ट्रपति इस कार्यक्रम के तहत देश में मौजूद आर्थिक असमानता को दूर करने के प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए चीन की बड़ी कंपनियों पर की तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं तो अन्य तरह की कार्रवाइयों को भी अंजाम दिया गया है।
आइए जानते हैं चीन का कॉमन प्रॉस्पेरिटी प्रोग्राम आखिर है क्या और क्यों इससे चीन की बड़ी बड़ी कंपनियां डरी हुई हैं?
चीन ने जितनी तेजी से तरक्की की है वह पूरी दुनिया को हैरत में डाले हुए है। लगभग भारत के साथ ही आजाद होने वाले चीन के पास एक समय अपने प्रधानमंत्री की यात्रा के लिए एक अदद विमान नहीं हुआ करता था। लेकिन आज जिस तरह से चीन ने आर्थिक तरक्की में भारत और पूरी दुनिया को पीछे छोड़ दिया है वह आश्चर्यजनक है। हालांकि ऐसा नहीं है कि चीन कि यह आर्थिक तरक्की समावेशी है। दरअसल जितनी तेजी से चीन मे आर्थिक संपन्नता बढ़ी है, अमीर और गरीब के बीच की खाई भी उतनी ही गहरी होती चली गई। कहने का मतलब है कि चीन में अमीर जहां और ज्यादा अमीर होत चला गया तो गरीब की गरीबी भी साथ साथ बढ़ती गई।
आज इसी समस्या का समाधान करने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग कॉमन प्रॉस्पेरिटी प्रोग्राम लेकर आए हैं। इस प्रोग्राम के तहत चीन एक समाजवादी विचार को आगे बढ़ रहा है, जिसका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को सम्पन्न बनाना है। इस नीति के तहत चीन अपने संस्थानों और ज्यादा ये वाले लोगन को प्रोत्साहित करेगा कि वे लोगों से कमा रहे हैं तो उन्हे वापस भी लौटायें और उनकी तरक्की मे सहायक बने।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार कॉमन प्रॉस्पेरिटी प्रोग्राम के तहत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दो लॉन्ग टर्म उद्देश्य रखे हैं। पहला है 2035 तक देश की पूरी आबादी तक जरूरी सार्वजनिक सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना और दूसरा 2050 तक देश में अमीरों और गरीबों की आय के बीच के अंतर को उचित सीमा तक कम करना।
अपने इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए चीन कुछ कदम उठा रहा है, जिनमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है देश की बड़ी कंपनियों पर अधिक टैक्स लगाकर उस पैसे का प्रवाह मध्य और निम्न वर्ग के लोगों की ओर करना। इसके अलावा चीन ऐसी कंपनियों को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के लिए भी प्रोत्साहित कर रहा है।
इन कदमों के अलावा चीन कानून बनाकर आय वितरण को भी नियंत्रित करने के प्रयास कर रहा है ताकि लोगों की आय के बीच अंतर मे कमी आए।
हालांकि चीन के द्वारा उठाए जा रहे इन कदमों से चीनी कंपनियों मे एक डर का माहौल भी बन रहा है। चीन के इन फैसलों से बड़ी कंपनियों को की तरह के नुकसान उठाने पड़ रहे हैं। चीन के ऐसे ही कुछ कदमों मे जैक मा के अली बाबा ग्रुप पर की गई कार्रवाई प्रमुख है। इसके अलावा चीन ने एजुकेशन कंपनियों पर भी सख्ती करनी शुरू की है। एजुकेशन से जुड़ी कंपनियां अब नॉन प्रॉफ़िट बेसिस पर भी ऑपरेट होंगी।
चीन के इस तरह के कदमों से पूरी दुनिया की कंपनियों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। लक्जरी समान की खपत के मामले में चीन की हिस्सेदारी पूरी दुनिया में 50 प्रतिशत है, लेकिन अब लोग अपनी आय को छुपाने के लिए इस तरह के सामानों को खरीदने से बच रहे हैं।
वहीं कुछ विशेषज्ञ चीन की इसी नीति को भारत के लिए फायदेमंद बता रहे हैं। अपनी इस नीति के तहत चीन चाहता है कि उसकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो। इसके लिए उसे ग्रामीण इलाकों मे आय बढ़ानी होगी, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में खपत बढ़े। अगर चीन ऐसा करता है तो क्षेत्रीय व्यापार मे बढ़ोतरी निश्चित है जिसका फायदा भारत को मिलेगा।