कामसूत्र के देश में सेक्स को लेकर इतनी झिझक क्यों है?

भारतीय समाज में सेक्स का जिक्र होने पर ही लोग बगले झांकने लगते हैं। अक्सर देखा जाता है कि किसी फिल्म में कोई अंतरंग दृश्य आने पर चैनल बदल दिया जाता है और बच्चों के सामने घर के वयस्क शर्मिंदगी महसूस करने लगते हैं। यहाँ तक कि किसी कंडोम ब्रांड के विज्ञापन को भी लोग सार्वजनिक रूप से देखना पसंद नहीं करते हैं।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यह उस समाज की हकीकत है जहां 2000 साल पहले कामसूत्र जैसा ग्रंथ यौन संबंधों के ऊपर लिखा गया? या फिर खजुराहो में यौन संबंधों को प्रदर्शित करती हुई कलाकृतियों का निर्माण किया गया था? जिस समय पश्चिम की संस्कृतियाँ चलना सीख रही थी, यहाँ अजंता-एलोरा में युवतियों की नग्न मूर्तियाँ तराशी जा रही थी?

यह आश्चर्यजनक है कि कामसूत्र को जन्म देने वाला और खजुराहो की उत्तेजक मूर्तियां बनाने वाला समाज आज सेक्स को लेकर इतना झिझकता है।

‘काम’ जीवन के चार आधार उद्देश्यों में से एक

हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन के चार आधार उद्देश्य माने गए हैं। ये चार उद्देश्य हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मनुष्य के जीवन दर्शन का आधार इन चार उद्देश्यों की प्राप्ति को ही माना गया है।

लोकव्यवहार मे ‘काम’ का अर्थ यौनिकता या यौन संबंधों से लिया जाता है। भारत के बनने के दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड का निर्माण भी लौकिक इच्छा से हुआ था और कामुकता को पवित्र माना गया था। ऐसे में कामुकता कोई शर्म महसूस करने जैसी चीज नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की खूबसूरती के तौर पर सबसे महत्वपूर्ण विषय है।

संस्कृत में ‘काम’ का अर्थ सेक्स नहीं है, बल्कि आनंद लेना है और अपनी इच्छाओं को पूरा करने का सुख लेना है। यह इच्छाएं भौतिक रूप से कुछ भी हो सकती हैं जिनमे शारीरिक सुख भी सम्मिलित है।

कामसूत्र और खजुराहो के मंदिर

कामसूत्र, सेक्स के विषय पर लिखा गया दुनिया का पहला ग्रंथ है। यह भारत में लगभग 2000 साल पहले या संभवतः उससे भी पूर्व लिखा गया था। कामसूत्र जैसे शारीरिक संबंधों पर आधारित ग्रंथ का लिखा जाना दिखाता है कि प्राचीन समय में भारतीय समाज में यौन संबंधों को लेकर कितना खुला माहौल रहा होगा।

कामसूत्र के अलावा खजुराहो के मंदिरों में यौन संबंध स्थापित करती हुई मूर्तियों की रचना, ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर में नग्न मूर्तियां, अजंता और एलोरा की गुफाओं में नग्न युवतियों के चित्र यह साबित करते हैं कि प्राचीन भारत में सेक्स को लेकर इतनी झिझक नहीं थी जितना हम आज के भारत में देखते हैं।

कामसूत्र के दूसरे अध्याय में चित्रों के आधार पर वर्णन किया गया है कि सेक्स के दौरान कौन-कौन से पोजीशन बनाए जा सकते हैं। इस किताब मे शारीरिक संबंधों से जुड़े हुए कई सिद्धांत लिखे गए हैं, जो आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। यह पूरी तरह से एक आधुनिक सेक्स मैनुअल की तरह है।

कामसूत्र के सिद्धांतों में महिला की इच्छा का सम्मान करने की बात कही गई है और कहा गया है कि यौन संबंध में महिला की सहमति जरूरी है। यह आधुनिक नारीवादी आंदोलन के सिद्धांतों की तरह है जो दिखाता है कि इस तरह की कोई किताब बेहद परिपक्व और संवेदनशील समाज में ही लिखी जा सकती थी।

कामसूत्र के देश में सेक्स को लेकर इतनी झिझक क्यों है?
फोटो स्त्रोत: tourmyindia.com

खजुराहो के मंदिर भी प्राचीन भारत में सेक्स को लेकर एक अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। भारत के केंद्र में स्थित इन मंदिरों में सेक्स का खुला चित्रण देखने को मिलता है। यहाँ यौन संबंधों का हर रूप देखने को मिलता है। मंदिर की दीवारों पर अलग अलग तरह की सेक्स पोजीशन को मूर्तियों के रूप में प्रदर्शित किया गया है। यहाँ तक कि एक साथ तीन लोगों को भी यौन संबंध बनाते हुए देखा जा सकता है। इन मंदिरों में ‘घट कंचुकी’ नामक खेल को भी प्रदर्शित किया गया है, जिसके अंतर्गत समूह में शारीरिक संबंध बनाने की प्रथा थी।

ऐसा क्या हुआ कि सेक्स टैबू बन गया

भारतीय समाज में सेक्स के टैबू मे बदल जाने को समझना काफी मुश्किल है। विशेषज्ञों के अनुसार पहले मुसलमानों और उसके बाद अंग्रेजों के शासन मे भारत मे कामुकता का दमन किया गया और धीरे धीरे आज के स्तर तक बदलाव आ गया।

मुस्लिम शासकों में भी अलग अलग धार्मिक प्रभाव वाले शासकों ने कभी भारतीय समाज को खुलकर जीने दिया तो कभी जमकर दमन किया। हालांकि कुछ विशेषज्ञ इस तर्क से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि भारत में इस्लामी संस्कृति ने भी खुलकर सांस ली। मुगल काल के दौरान जो शेरो-शायरी लिखी गई उस में ईश्वर के अलावा समलैंगिक संबंधों की भी बात की गई है।

भारत की कामुकता के दमन में अंग्रेजों के शासन को भी इतिहासकार जिम्मेदार मानते हैं। 1857 के विद्रोह के बाद भारत को ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ले लिया गया जिसने यहाँ वह कानून लागू किये जो ब्रिटिश मूल्यों पर आधारित थे। इस नियमों में परिवार की एक खास रूपरेखा बनाई गई थी जिसमे महिलाओं और पुरुषों के एक दूसरे के साथ व्यवहार से संबंधित दिशा निर्देश भी थे।

धीरे धीरे वो लोग जिनकी शिक्षा ब्रिटिश तौर तरीकों से हुई थी उन्होंने ये निष्कर्ष निकाला कि सेक्स करना गलत है। सामाजिक सम्मान के मानकों में बदलाव के साथ आम लोगों ने अपनी संस्कृति को इन ब्रिटिश तौर तरीकों से पढ़े लोगों की नजर से देखना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया मे लोग तर्कसंगत बनने लगे और अपने रीति रिवाजों और मिथकों को सवालों के घेरे मे खड़ा करने लगे।

इस तरह से प्राचीन भारत की एक आजाद ख्याल और सेक्स को उत्सव समझने वाली संस्कृति ने दम तोड़ दिया और जन्म हुआ वर्तमान समाज का जहां सेक्स एक टैबू है।