क्या भगवान शिव के इन दस अवतारों के बारे में जानते हैं आप?

क्या भगवान शिव के इन दस अवतारों के बारे में जानते हैं आप?
फोटो स्रोत: Pinterest 

हिन्दू धर्म में भगवान के अवतार लेने की व्यवस्था है। मूलतः हिन्दू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, और भगवान शिव को मुख्य शक्तियां या भगवान माना गया है। ब्रह्मदेव जहां सृष्टि का निर्माण करते है तो भगवान विष्णु सृष्टि का पालन पोषण करते हैं। वहीं भगवान शिव को सृष्टि के विनाश के लिए जिम्मेदार माना जाता है ताकि पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो सके। 

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान अपने भक्तों के दुखों को हरने के लिए, धर्म की हानि होने पर पुनः धर्म की स्थापना के लिए और सृष्टि की मानक व्यवस्था को बनाए रखने के प्रयोजनों के लिए धरती पर अवतार लेते हैं। जैसे कि भगवान विष्णु के राम और कृष्ण अवतार या भगवान शिव के हनुमान अवतार। 
इन अवतारों में भगवान विष्णु के दस अवतार बहुत प्रसिद्ध हैं। आम तौर पर सभी लोग भगवान विष्णु के दस अवतारों के बारे में जानते हैं। हालांकि कहीं कहीं भगवान विष्णु के 24 अवतारों के बारे में भी उल्लेख मिलता है। लेकिन आज के इस लेख में हम भगवान शिव के प्रमुख अवतारों के बारे में बात करेंगे।
 
भगवान शिव ने भी समय समय पर धरती पर धर्म की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए और अन्य प्रयोजनों से अवतार लिया था। तो चलिए जानते है भगवान शिव के प्रमुख अवतारों के बारे में। 

भगवान शिव के प्रमुख अवतार: 

पिप्पलाद अवतार: पिप्पलाद ऋषि दधीचि के पुत्र थे। इन्द्र की सहायता के लिए जब ऋषि दधीचि ने प्राण त्याग दिए तो उनकी पत्नी ने भी अपने पुत्र को एक पीपल के वृक्ष के सानिध्य में छोड़कर सती होना स्वीकार किया। पीपल के वृक्ष के नीचे पालन पोषण होने के कारण ही इनका नामकरण ब्रह्मदेव द्वारा पिप्पलाद किया गया। 
एक बार पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा कि क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि मेरे जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए। देवताओं ने कहा कि ऐसा शनिदेव की दृष्टि के कारण हुआ। 
पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। 
नंदी अवतार: भगवान शिव सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका वहाँ नंदी भी स्वयं उनका ही अवतार माना जाता है। नंदी कर्म का प्रतीक है, अर्थात कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। 
शिवपुराण के अनुसार शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। लेकिन उनके पितरों ने वंश समाप्त होता देखकर उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। तब शिलाद में भगवान शिव की कठोर तपस्या की और भगवान से एक अयोनिज और मृत्युहीन संतान का वर मांगा। भगवान शिव ने उन्हे स्वयं उनके पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दे दिया। 
कुछ समय बाद शिलाद को भूमि जोतते समय भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। इस बालक का नाम नंदी रखा गया। भगवान शिव ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस प्रकार नंदी नंदीश्वर हो गए। नंदी का विवाह मरुतों की पुत्री सुयश से हुआ था। 
 
वीरभद्र अवतार: जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपना देहत्याग कर दिया तब भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे एक शिला पर पटक दिया। 
इस जटा के पूर्वभाग से महाभयंकर वीरभद्र उत्पन्न हुए। भगवान शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। 
भैरव अवतार: भैरव को शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव का पूर्णरूप माना जाता है। कहते हैं कि भगवान शिव की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा और विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तब वहाँ तेजपुंज के मध्य एक पुरुष की आकृति दिखाई पड़ी। 
इस आकृति को देखकर ब्रह्मदेव ने कहा कि चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अतः मेरी शरण में आ जाओ। यह सुनकर भगवान शिव को क्रोध आ गया। भगवान शिव ने उस आकृति को कालराज और भैरव होने का वरदान प्रदान किया। 
तब काल भैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया। इस कारण भैरव को ब्रह्महत्या का पाप लगा। भैरव ने काशी में ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित किया। 
अश्वत्थामा: पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भी भगवान शिव के अंश अवतार माने जाते हैं। आचार्य द्रोण ने भगवान शिव को पुत्र रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अपने अंश के रूप में अश्वत्थामा के रूप में जन्म लिया था। 
ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर है और आज भी इसी धरती पर निवास करते हैं। 
शरभ अवतार: इस अवतार में भगवान शिव का आधा शरीर मृग का तथा आधा शरीर शरभ नामक पक्षी का बताया गया है। माना जाता है कि हिरणीकश्यपु का वाढ करने के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई तो भगवान शिव ने शरभ अवतार में उनकी स्तुति की और उन्हे शांत होने की प्रार्थना की। 
लेकिन तब भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो शरभ के रूप में भगवान शिव उन्हे अपनी पुंछ से बांधकर ले उड़े। तब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने शरभ अवतार से क्षमायाचना कर उनकी स्तुति की। 
गृहपति अवतार: विश्वानर मुनि अपनी पत्नी शुचिष्मती के साथ नर्मदा के तट पर निवास करते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। तब अपनी पत्नी के कहने पर मुनि विश्वानर ने भगवान शिव की आराधना की। उन्होंने काशी में भगवान शिव के वीरेश लिंग की विनम्र भाव से पूजा की। 
कहते हैं कि मुनि विश्वानर को वीरेश लिंग के मध्य में भगवान शिव ने बाल रूप में दर्शन दिए थे। उन्होंने बाल रूप में भगवान शिव की विनम्र भाव से स्तुति की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके पुत्र रूप में अवतार लेने का वरदान दिया। 
कालांतर में भगवान शिव ने माता शुचिष्मती के गर्भ से जन्म लिया। भगवान ब्रह्मा ने स्वयं इस अवतार का नाम गृहपति रखा था। 
ऋषि दुर्वासा: ऋषि दुर्वासा को भी भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। मान्यता के अनुसार सती अनुसूईया के पट्टी महर्षि अत्री ने ब्रह्मदेव के निर्देशानुसार पत्नी सही ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया। 
उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोक में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। 
समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा हुए, विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्त उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया। 
भगवान हनुमान: हनुमान जी को भगवान शिव का सबसे श्रेष्ठ अवतार माना जाता है। भगवान शिव ने वानर के रूप में हनुमान अवतार लिया था। हनुमान जी को भगवान राम का अनन्य भक्त माना जाता है। कहते हैं कि हनुमान जी की कृपा के बिना भगवान राम की कृपा भी नहीं प्राप्त की जा सकती। 
वृषभ अवतार: भगवान विष्णु उपद्रवी पुत्रों का संहार करने के लिए भगवान शिव ने वृषभ अवतार लिया था। कहते हैं कि जब भगवान विष्णु दैत्यों का विनाश करने के लिए पाताल लोक गए थे तब उन्हें वहाँ बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियाँ दिखाई पड़ी। भगवान विष्णु ने उनसे रमण कर के बहुत से पुत्र उत्पन्न किये। भगवान विष्णु के ये पुत्र अंत्यन्त शक्तिशाली और उपद्रवी थे। उन्होंने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। 
तब विष्णुपुत्रों के उपद्रव से सृष्टि को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने वृषभ अवतार लिया और विष्णुपुत्रों का संहार किया। 
 
इन दस अवतारों के अतिरिक्त भगवान शिव ने और भी बहुत सारे अवतार धारण किये थे। शास्त्रों के अनुसार उनके 19 प्रमुख अवतार माने गए हैं। इस लेख में हमने उनके दस अवतारों की बात की है। जल्दी ही हम उनके बाकी नौ अवतारों पर भी एक लेख प्रस्तुत करेंगे।