लेह का चोगलमसार इलाका। इस इलाके में तिब्बत से आए शरणार्थियों के लिए कैंप बने हुए हैं। ये शरणार्थी उस व्यक्त भारत आए थे जब चीन ने उनकी मातृभूमि तिब्बत पर अवैध कब्जा कर लिया था। आज इन लोगों को भारत आए हुए पाँच दशक से भी ज्यादा समय बीत चुका है, हालांकि अपनी मातृभूमि को चीन से आजाद कराने का जज्बा आज भी इन लोगो की आँखों में देखा जा सकता है।
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फोटो स्रोत: आज तक |
यहीं के कैंप न. एक में रहता है नीमा तेनजिन का परिवार। नीमा तेनजिन, भारतीय सेना का एक ऐसा सैनिक जिसके हिस्से में एक अनोखी शहादत आई। आम तौर पर जब कोई सैनिक अपने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए शहीद होता है तो सम्मान के रूप में उस सैनिक के पार्थिव शरीर को देश के झंडे में लपेटा जाता है। लेकिन नीमा तेनजिन एक ऐसे सैनिक हैं, जिन्हे उनकी शहादत के बाद एक नहीं बल्कि दो देशों के झंडों में लपेटा गया था।
नीमा तेनजिन एक तिब्बती शरणार्थी थे जो लद्दाख में भारत की सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। यह स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स में सूबेदार के पद पर तैनात थे। नीमा ने पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे पर भारतीय सीमा की रक्षा के लिए चीनी सैनिकों से लोहा लिया और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। विकास बटालियन के इस सैनिक को जब अंतिम विदाई दी गई तो उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे के साथ तिब्बती झंडे में भी लपेटा गया। इस प्रकार यह अनोखा सम्मान पाने वाले नीमा शायद पहले सैनिक हैं।
नीमा तेनजिन एक तिब्बती शरणार्थी थे जो लद्दाख में भारत की सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। यह स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स में सूबेदार के पद पर तैनात थे। नीमा ने पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे पर भारतीय सीमा की रक्षा के लिए चीनी सैनिकों से लोहा लिया और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। विकास बटालियन के इस सैनिक को जब अंतिम विदाई दी गई तो उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे के साथ तिब्बती झंडे में भी लपेटा गया। इस प्रकार यह अनोखा सम्मान पाने वाले नीमा शायद पहले सैनिक हैं।
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फोटो स्रोत: इंडिया नैरेटिव |
क्या है स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स:
नीमा तेनजिन भारत की स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स या विकास रेजीमेंट का हिस्सा थे। इस रेजीमेंट का गठन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद किया गया था। उस समय इस रेजीमेंट में तिब्बती शरणार्थियों को शामिल किया गया था। दरअसल यह रेजीमेंट बनाई ही इसलिए गई थी ताकि चीन के साथ लगती ऊबड़खाबड़ और पहाड़ी सीमा की निगरानी और सुरक्षा की जा सके। तिब्बती लोग इस तरह के क्षेत्रों के अभ्यस्त होते हैं इसलिए इन्हे इस रेजीमेंट में शामिल किया गया था। हालांकि बाद में यह केवल तिब्बतियों की रेजीमेंट नहीं रही और भारतीय लोगों को भी इसमे शामिल किया जाने लगा। इस रेजीमेंट में महिला और पुरुष दोनों तरह के जवान होते हैं। कई तरह के मिलिट्री ऑपरेशनों में यह रेजीमेंट यहां भूमिका निभा चुकी है। इनमे 1971 से लेकर 1999 के युद्ध भी शामिल है। इस रेजीमेंट के अंतर्गत सात बटालियन आती है और यह सीधे केबिनेट सचिवालय को रिपोर्ट करती है। सेना के मेजर जनरल रैंक के अफसर को इस रेजीमेंट में आईजी के तौर पर मुखिया बनाया जाता है।